Close

    कानूनी संरक्षक

    संरक्षक वह व्यक्ति होता है जिसे किसी व्‍यक्ति  की या उसकी संपत्ति की देखभाल के लिए नियुक्त किया जाता है। वह उस व्‍यक्ति की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेता है जिसका उसे संरक्षक नियुक्त किया गया है। संरक्षक, दिव्‍यांग व्‍यक्ति की ओर से सभी कानूनी निर्णय लेता है। किसी अन्य व्यक्ति की देखभाल का कारण उसका अल्‍पायु होना हो सकता है अर्थात वह व्यक्ति जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो। इसका तात्पर्य ऐसे व्यक्ति की संरक्षकता से भी हो सकता है जो शारीरिक और मानसिक दिव्‍यांगता के कारण अपनी या अपनी संपत्ति की देखभाल करने में असमर्थ है। प्रारंभिक काल से ही अल्‍पायु की स्थिति सभी समाज में संरक्षकों की नियुक्ति का आधार रही है। यह इस तथ्य के कारण है कि एक नाबालिग व्यक्ति को अपने लिए निर्णय लेने में  अक्षम माना जाता है।  इसलिए, कानून में किसी नाबालिग व्यक्ति को किसी वयस्क व्यक्ति के साथ अनुबंध करने के लिए अक्षम माना जाता है। इसलिए सभी मामलों में, एक नाबालिग को भी अपने संरक्षक के अलावा अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अयोग्य माना गया है। एक संरक्षक नाबालिग के हितों और उसकी संपत्ति की रक्षा के लिए उसकी ओर से निर्णय लेता है।

    स्रोत: संरक्षकता और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890, भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987

    ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, बौद्धिक दिव्‍यांगता और बहु दिव्‍यांगजनों के व्यक्तियों की विशेष स्थिति

    ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, बौद्धिक दिव्‍यांगता और बहु दिव्‍यांगता के व्यक्तियों की विशेष स्थिति होती है क्योंकि 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद भी, वे हमेशा अपने जीवन का प्रबंधन करने या अपनी बेहतरी के लिए कानूनी निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। इसलिए, उन्हें जीवन भर कानूनी क्षेत्रों में अपने हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी की आवश्यकता हो सकती है। हालाँकि, सेरेब्रल पाल्सी और बहु दिव्‍यांगता के मामलों में, सक्षम तंत्र और/या वैज्ञानिक सुविधाओं की उपलब्धता के कारण केवल सीमित संरक्षकता की आवश्यकता हो सकती है जो ऐसे व्यक्तियों को आजादी से अलग-अलग श्रेणी के लोगों के साथ कार्य करने में सक्षम बनाती है।

    स्रोत: दिव्‍यांगता विशेषज्ञों की राय के अनुसार राष्‍ट्रीय न्‍यास के अंतर्गत आने वाले दिव्‍यांगतायें ऐसी स्थितियां हैं जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है और यह कोई बीमारी नहीं है। (एएलए की कानूनी सलाह के अनुसार)

    राष्ट्रीय न्‍यास अधिनियम के तहत संरक्षकता

    राष्ट्रीय न्‍यास अधिनियम की धारा 14 के तहत, जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली स्थानीय स्तरीय समिति को ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, बौद्धिक दिव्‍यांगता  और बहु दिव्‍यांगता वाले व्यक्तियों के लिए नियम 16(1) के तहत फॉर्म ए में आवेदन प्राप्त करने और नियम 16(2) के तहत फॉर्म बी में संरक्षकों की नियुक्ति करने का अधिकार है। यह उनकी संपत्तियों सहित उनके हितों की निगरानी और सुरक्षा के लिए तंत्र भी प्रदान करता है।

     

    संरक्षकता क्यों?

    • कानूनी रिक्तता को भरने के लिए क्योंकि संरक्षकता के अन्य कानून केवल नाबालिगों के लिए हैं
    • दिव्‍यांगजनों की निर्णय लेने की क्षमता में कमी।

    स्रोत-एएलए की कानूनी सलाह के अनुसार।

    संरक्षक के कर्त्तव्य

    धारा 16 (1) में कहा गया है कि “धारा 14 के तहत अभिभावक के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपनी नियुक्ति की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर, दिव्‍यांगजन से संबंधित अचल संपत्ति की सूची और दिव्‍यांगजन की ओर से प्राप्त सभी संपत्ति और अन्य चल संपत्ति तथा दिव्‍यांगजन के सभी दावों, सभी ऋणों और देनदारियों का विवरण उस प्राधिकारी को सौंप देगा जिसने उसे नियुक्त किया है।

    धारा 16 (2) में कहा गया है कि “प्रत्येक संरक्षक को प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में तीन महीने की अवधि के भीतर उक्त नियुक्ति प्राधिकारी को अपने प्रभार में संपत्ति और परिसंपत्तियों का लेखा-जोखा,  दिव्‍यांगगजन के खाते में प्राप्त और वितरित की गई राशि और उसके पास शेष राशि प्रस्तुत करनी होगी”।

    संरक्षकता के लिए कौन आवेदन कर सकता है

    विनियम की धारा 11:

    • माता-पिता दोनों संयुक्त रूप से, या मृत्यु, तलाक, कानूनी विच्‍छेद, परित्याग या अभियुक्‍त होने के कारण किसी एक के न रहने पर, अकेले ही या 18 वर्ष से अधिक आयु के बाद उसके वार्ड की संरक्षकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
    • माता-पिता दोनों की मृत्यु, परित्याग, अभियुक्‍त होने की स्थिति में, भाई-बहन (सौतेले भाई-बहनों सहित) संयुक्त रूप से या अकेले (अकेले आवेदन का कारण अलग से बताया जाएगा) परिवार के दिव्‍यांग सदस्य की संरक्षकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
    • उपरोक्त उप-विनियम (1) और (2) के लागू न होने की स्थिति में, कोई रिश्तेदार संरक्षकता के लिए आवेदन कर सकता है।
    • उप-विनियम (1), (2) और (3) के लागू न होने की स्थिति में कोई भी पंजीकृत संगठन संरक्षकता के लिए आवेदन कर सकता है।
    • स्थानीय स्तर की समिति किसी पंजीकृत संगठन को किसी निराश्रित या बेसहारा व्यक्ति के मामले में संरक्षकता के लिए आवेदन करने का निर्देश दे सकती है।

     

     

    आवेदक अभिभावक के रूप में किसे इंगित कर सकता है (विनियम की धारा 12)

    1. माता-पिता दोनों संयुक्त रूप से या अकेले मृत्यु, तलाक, कानूनी विच्‍छेद, परित्याग या अभियुक्‍त घोषित होने के कारण किसी एक के न रहने की स्थिति में, नाबालिग के प्राकृतिक संरक्षक होने के नाते, स्वयं को या जैसा भी मामला हो, 18 वर्ष की आयु से अधिक दिव्‍यांग के अभिभावक के रूप में नियुक्त करने के लिए स्थानीय स्तर समिति को आवेदन कर सकते हैं, इस मामले में आवेदन तब तक स्वीकार किया जाएगा जब तक कि माता-पिता को निम्‍नलिखित कारणों से अयोग्य घोषित न कर दिया जाए:
    • नागरिकता का न होना;
    • मानसिक रूप से अस्वस्थ होना;
    • अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाना या बेसहारा होना.
    1. आवेदक अभिभावक के रूप में नियुक्‍त करने के लिए भाई-बहन, या परिवार के किसी सदस्य या किसी अन्य व्यक्ति या पंजीकृत संस्थान का नाम दे सकता है और संस्थानों के मामले में पात्रता की शर्तें उप-विनियम (3), (4) और (5) के आधार पर होंगी।
    2. संस्था को संरक्षक मानने की स्थिति में संस्था को किसी कानून के तहत पंजीकृत होना चाहिए और व्यक्ति की देखभाल करने में सक्षम होना चाहिए।
    3. किसी संस्था का किसी कानून के तहत पंजीकरण बंद हो जाने या कामकाज बंद हो जाने या अनुपयुक्त पाए जाने की स्थिति में, स्थानीय स्तर की समिति ऐसे संस्थान की देखरेख में रह रहे किसी भी वार्ड के पालन-पोषण की वैकल्पिक व्यवस्था करेगी।
    4. उप-विनियम (4) के तहत वैकल्पिक देखभाल स्‍वाभाविक रूप से स्थायी नहीं होगी और एक वर्ष की अवधि के भीतर स्थायी संरक्षकता प्रदान कर दी जायेगी।
    5. आवेदक को संरक्षक की नियुक्ति के समय उस स्थान के आसपास या उसके नजदीक रहना चाहिए जहां वार्ड रह रहा हो।
    6. किसी पुरुष को महिला वार्ड के लिए संरक्षक के रूप में नहीं नियुक्‍त किया जाएगा और महिला वार्ड के मामले में पुरुष व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ सह-संरक्षकता दी जाएगी और वह मुख्य सह-संरक्षक होगा।

    फॉर्म ए के साथ संलग्न किए जाने वाले दस्तावेज़

    संरक्षकता के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रीय न्‍यास विनियम की धारा 13(2) के अनुसार किसी भी संख्या में सहायक दस्तावेज़ मांगना स्‍थानीय स्‍तरीय समिति का विशेषाधिकार है। इसलिए फॉर्म-ए के साथ जमा करने के लिए एक मार्गदर्शक सूची नीचे दी गई है:

    • नगर निगम/जन्म रजिस्ट्रार/स्कूल/शैक्षणिक बोर्ड से जारी दिव्‍यांग व्यक्ति का जन्म प्रमाण।
    • राशन कार्यालय, चुनाव आईडी कार्ड, पासपोर्ट कार्यालय आदि से जारी दिव्‍यांग व्यक्ति के निवास का प्रमाण पत्र। अक्सर, 18 वर्ष की आयु तक निवास का प्रमाण दिव्‍यांग व्यक्ति के पिता के नाम पर जारी राशन कार्ड में उपलब्ध होता है। यदि पता बदल गया है तो इसका समुचित प्रमाण समिति को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • राज्य या केंद्र सरकार/सरकारी अस्पताल/सरकारी मनोरोग अस्पताल/सरकारी अधिकृत डॉक्टर/विशेषज्ञ के किसी भी मेडिकल बोर्ड या प्राधिकरण से जारी दिव्‍यांगता प्रमाण पत्र।
    • किसी स्वैच्छिक संगठन या संस्था को संरक्षक नियुक्त करने की स्थिति में आवेदन पत्र के पीछे माता-पिता की सहमति लेनी होगी।
    • आवेदक को प्रमाण के मूल दस्तावेज़ जमा करना आवश्यक नहीं है। स्वप्रमाणित फोटोकॉपी जमा की जा सकती है और जब भी आवश्यक हो समिति सत्यापन के लिए मूल प्रति प्रस्तुत करने के लिए कह सकती है।
    • आवेदक के लिए एकल आवेदन जमा करने का कारण बताना भी आवश्यक है (जहाँ ऐसा आवेदन एकल जमा किया जाता है)। इसे आवेदन पत्र में बताया जा सकता है या इसके लिए अतिरिक्त शीट का उपयोग किया जा सकता है। जहां आवेदक के लिए प्रदान की जाने वाली व्यक्तिगत देखभाल और रखरखाव की प्रकृति और संरक्षक द्वारा प्रबंधित और देखभाल की जाने वाली चल और अचल संपत्ति का विवरण देना आवश्यक है, उसे ऐसी संपत्तियों के अस्तित्व का अतिरिक्त शीट में प्रमाण के साथ उल्‍लेख किया जा सकता है।
    • जहां किसी पुरुष आवेदक को महिला वार्ड के लिए संरक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन करना होता है, वहां उसके पति या पत्नी को सह-अभिभावक के रूप में नियुक्त करना होगा। इसलिए ऐसे आवेदकों के लिए अपने पति/पत्‍नी का विवरण जमा करना आवश्यक है। यदि उसका कोई पति/पत्‍नी नहीं है, तो आवेदन का कोई फायदा नहीं होगा।
    • नियुक्त अभिभावक के लिए सहमति प्रपत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।
    • अभिभावक के लिए सहमति प्रपत्र डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।

    स्रोत: राष्ट्रीय न्‍यास नियमों के तहत फॉर्म ए में दिव्‍यांग व्यक्ति की आयु, दिव्‍यांगता श्रेणी और पता की आवश्यकता होती है जिसके लिए उपर्युक्‍त प्रमाण मांगा गया है।

    स्रोत – फॉर्म ए के साथ नियमों की धारा 16(1) पढ़ें।

    स्रोत – एएलए की कानूनी सलाह के अनुसार।

    स्रोत – राष्ट्रीय न्यास विनियम की धारा 11(1) और (2)

    स्रोत – राष्ट्रीय न्यास विनियम की धारा 12(7)।

     

    विनियम की धारा 13 – संरक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन प्राप्त करने, उस पर कार्यवाही करने और पुष्टि करने के लिए दिशानिर्देश

    1. स्थानीय स्तर की समिति नियमों के तहत फॉर्म ए में संरक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन प्राप्त करेगी। (जीएसआर 123(ई) दिनांक 16 फरवरी 2004 द्वारा संशोधित)।
    2. संरक्षक की नियुक्ति के लिए आवेदन प्राप्त होने पर, स्थानीय स्तरीय समिति आवेदन की जांच करेगी और किसी भी सहायक दस्तावेज या जानकारी की मांग करेगी जो संरक्षकता के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए आवश्यक हो सकती है।
    3. अपने अलावा, माता-पिता से संरक्षक के लिए आवेदन प्राप्त होने की स्थिति में, स्थानीय स्तरीय समिति किसी भी तरीके से माता-पिता की काउंसलिंग कराने का निर्णय ले सकती है, समिति माता-पिता के अलावा किसी अन्य संरक्षक के होने की वास्तविकता का निर्धारण करने का फैसला भी ले सकती है।
    4. यदि दिव्‍यांग व्यक्ति के माता-पिता या रिश्तेदार नहीं हैं और जिन्हें बेसहारा या निराश्रित होने या परित्यक्त पाए जाने के कारण संरक्षक की आवश्यकता है, तो समिति के सदस्य   पंजीकृत संगठन से उस व्यक्ति के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया शुरू करने के लिए   आवेदन मांग सकते हैं।
    5. स्थानीय स्तर की समिति को संरक्षकता की आवश्यकता की वास्तविकता निर्धारित करने के लिए दिव्‍यांग व्यक्ति का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। वह आवश्यकता निर्धारित करने के लिए तकनीकी कर्मियों या उनकी सेवाओं की सहायता ले सकती है।
    6. स्थानीय स्तर की समिति उस व्यक्ति की क्षमताओं और उपयुक्तता के बारे में स्वयं को संतुष्ट करेगी जिसे संरक्षकता प्रदान की जा रही है।
    7. व्यक्तिगत देखभाल और रखरखाव के लिए संरक्षकता आवेदन निम्नलिखित क्षेत्रों को कवर करने के लिए स्वीकार किया जाएगा, अर्थात् –

     

    • भोजन, कपड़े और आश्रय की जरूरतें;
    • स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतें;
    • धार्मिक जरूरतें;
    • शिक्षा, प्रशिक्षण और रोजगार की जरूरतें;
    • अवकाश और पोषण की जरूरतें;
    • शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षा;
    • संवैधानिक और मानवाधिकारों का संरक्षण; और
    • चिकित्सा और शल्य चिकित्सा संबंधी आवश्यकताएँ
    1. पंजीकृत संगठन या दिव्‍यांग व्यक्ति के माता-पिता या रिश्तेदार के आवेदन पर संरक्षक की नियुक्ति की पुष्टि नियमों के तहत फॉर्म बी में की जायेगी। (जीएसआर 123(ई) दिनांक 16 फरवरी 2004 द्वारा संशोधित)।

    हार्ड कॉपी सिस्टम के अलावा स्‍थानीय स्‍तर की समिति के लिये ऑनलाइन लीगल गार्जियनशिप मॉड्यूल उपलब्‍ध है जिसके माध्‍यम से नेशनल डिपॉजिटरी ऑफ लीगल गार्जियनशिप सर्टिफिकेट (एनडीएलजीसी) बनाने के लिए संरक्षक और उसकी नियुक्ति के लिए आवेदनों पर कार्यवाही की जा सकती है।

     

    संरक्षक को हटाना

    • जब भी किसी दिव्‍यांगजन के माता-पिता या रिश्तेदार या किसी पंजीकृत संगठन को पता चलता है कि संरक्षक-
    • किसी दिव्‍यांगजन के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है या उसकी उपेक्षा कर रहा है; या
    • संपत्ति का दुरुपयोग कर रहा है तो वह निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ऐसे संरक्षक को हटाने के लिए समिति को आवेदन कर सकता है।
    • ऐसा आवेदन प्राप्त होने पर, यदि समिति संरक्षक को हटाने के कारणों से संतुष्ट है और कारणों को लिखित रूप में दर्ज किया गया है तो वह ऐसे संरक्षक को हटा सकती है और उसके स्थान पर नया संरक्षक नियुक्त कर सकती है या यदि ऐसा कोई संरक्षक उपलब्ध नहीं है, तो ऐसी अन्य व्यवस्था कर सकती है जो दिव्‍यांग की देखभाल और सुरक्षा के लिए आवश्यक हो।
    • उप-धारा (2) के तहत हटाया गया कोई भी व्यक्ति दिव्‍यांग की सभी संपत्ति का प्रभार नए संरक्षक को देने और उसके द्वारा प्राप्त या वितरित किए गए सभी धन का हिसाब देने के लिए बाध्य होगा।

    स्पष्टीकरण – इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए,  “रिश्तेदार” में दिव्‍यांग के रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित कोई भी व्यक्ति शामिल है।

    संरक्षक को हटाने की प्रक्रिया (राष्ट्रीय न्यास अधिनियम की धारा 17)

    1. अधिनियम की धारा 17 की उपधारा (1) के खंड (ए) और (बी) में निर्दिष्ट आधार पर किसी दिव्‍यांग के माता-पिता या रिश्तेदार या पंजीकृत संगठन से संरक्षक को हटाने के लिए आवेदन प्राप्त होने पर स्थानीय स्तर की समिति जांचकर्ताओं का एक दल बनायेगा जिसमें कम से कम तीन व्यक्ति शामिल होंगे।
    2. दल में मूल संगठन का एक प्रतिनिधि, दिव्‍यांगजन संघ का एक प्रतिनिधि और दिव्‍यांगता से जुड़ा एक सरकारी अधिकारी शामिल होगा जो सहायक निदेशक के पद से नीचे नहीं का न हो।
    • संरक्षक की नियुक्ति पर निर्णय लेते समय, स्थानीय स्तर की समिति यह सुनिश्चित करेगी कि जिस व्यक्ति का नाम संरक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए सुझाया गया है वह:
    • भारत का नागरिक हो;
    • मानसिक रूप से विक्षिप्त न हो या वर्तमान में मानसिक बीमारी का इलाज न चल रहा हो;
    • आपराधिक दोषसिद्धि का इतिहास न हो;
    • वह बेसहारा न हो और अपने जीवन यापन के लिए दूसरों पर निर्भर न हो; और
    • दिवालिया घोषित न किया गया हो।

    IV         यदि स्थानीय स्तर की समिति किसी संस्था या संगठन को संरक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए विचार करती है, तो निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए:

    • संस्थान को राज्य या केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त होना चाहिए;
    • संस्था के पास संबंधित ‘सी’ श्रेणी के दिव्‍यांगजनों के लिए आवासीय सुविधाएं या छात्रावास चलाने सहित दिव्‍यांगता पुनर्वास सेवाएं प्रदान करने का न्यूनतम 2 वर्ष का अनुभव होना चाहिए;
    • दिव्‍यांगजनों के लिए आवासीय सुविधा या छात्रावास को बोर्ड के निर्दिष्ट स्थान, कर्मचारी, फर्नीचर, पुनर्वास और चिकित्सा सुविधाओं के संदर्भ में न्यूनतम मानक बनाए रखना होगा। किसी दिव्‍यांगजन के साथ दुर्व्यवहार या उपेक्षा का आकलन करने के लिए शिकायत की जांच करते समय जांचकर्ताओं की टीम को बोर्ड के निर्दिष्ट दिशानिर्देशों का पालन करना होगा।

    V          भूल या चूक के निम्नलिखित कृत्यों को संरक्षक की ओर से दुरुपयोग या उपेक्षा माना  जाएगा, अर्थात् –

    • दिव्‍यांग को लंबे समय तक एक कमरे में एकान्त में रखना;
    • दिव्‍यांग को जंजीर से बांधना;
    • किसी दिव्‍यांग को पीटना जिसके परिणामस्वरूप चोट, त्वचा या ऊतक क्षति हुई हो या उसका इलाज करना (दिव्‍यांग के हानिकारक व्यवहार के कारण नहीं);
    • यौन शोषण;
    • भोजन, पानी और कपड़े जैसी वास्‍तविक जरूरतों से लंबे समय तक वंचित रखना;
    • दिव्‍यांगता पुनर्वास के क्षेत्र में विशेषज्ञों द्वारा निर्दिष्ट पुनर्वास या प्रशिक्षण कार्यक्रमों का कोई प्रावधान या गैर-अनुपालन;
    • दिव्‍यांग की संपत्ति का दुरुपयोग; और
    • दिव्‍यांग की प्रशिक्षण और प्रबंधन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुविधाओं की कमी या प्रशिक्षित या पर्याप्त कर्मचारियों का कोई प्रावधान नहीं।

    VI         जांचकर्ताओं का दल दस दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्‍तुत करेगा।

    VII        जांच दल की रिपोर्ट प्राप्त होने पर स्थानीय स्तर की समिति उक्त संरक्षक को अपना पक्ष रखने का अवसर देने के बाद उसे हटाने पर दस दिन में अंतिम निर्णय लेगी।

    VIII       स्थानीय स्तर की समिति संरक्षक को हटाने या आवेदन को अस्वीकार करने के अपने कारणों को लिखित रूप में दर्ज करेगी।

     

     

    गृह यात्रा (होम विजिट)

    1. स्थानीय स्तर की समिति की सफलतार कानूनी संरक्षक के लिए आवेदन से संबंधित प्रामाणिक जानकारी, तथ्य और आंकड़े एकत्र करने में निहित है।
    2. यह महत्वपूर्ण है कि होम विजिट अघोषित रूप से किया जाना चाहिए क्योंकि कानूनी संरक्षक के लिए आवेदन करने वाले आवेदक द्वारा तथ्यों को छिपाने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
    3. यह अनिवार्य है कि स्‍थानीय स्‍तरीय समिति के एनजीओ सदस्य विशेषरूप से दिव्‍यांग सदस्य के साथ होम विजिट करें ताकि वे उस स्‍थान की वास्तविक स्थिति, जीवन यापन की स्थिति, संपत्ति विवरण, परिवार की गतिशीलता और दिव्‍यांग की कार्यात्मक क्षमता के स्तर की जांच कर सकें । उन्‍हें होम विजिट के दौरान परिवार में और पड़ोसी के साथ विवादों आदि सहित सभी विवरण प्राप्त करने के लिए परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ सभी प्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। होम विजिट के दौरान मिली जानकारी के आधार पर, स्‍थानीय स्‍तरीय समिति उन सरकारी अधिकारियों की सूची तैयार करेगी जो दिव्‍यांगजन और उनके परिवारों को हो रही बहुआयामी समस्‍याओं के समाधान खोजने में शामिल होंगे। इन अधिकारियों और संबंधित परिवार और अन्य सदस्यों को संबंधित मुद्दों के सौहार्द्रपूर्ण और स्थायी समाधान पर पहुंचने के लिए जिला कलेक्टर के चैंबर में सुनवाई के लिए बुलाया जाना चाहिए।
    4. दिव्यांगजन और उनके परिवार के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को प्रभावित करने वाली किसी भी समस्या को होम विजिट के दौरान उठाया जाना चाहिए और सुनवाई के दौरान प्रस्तुत किया जाना चाहिए ताकि जिला प्रशासन उन्हें आवास, पेंशन, बीमा, शिक्षा आदि जैसे कल्याण से संबंधित किसी भी मौजूदा योजना के दायरे में लाने की संभावनाओं का पता लगा सके।
    5. यह भी नोट करना चाहिए कि इस बात की पूरी संभावना है कि कई मामले जिन्हे स्‍थानीय स्‍तरीय समिति संभालती है और जिन पर निर्णय लेती है, वे उच्च न्यायालय में रिट याचिकाओं के रूप में समाप्त हो सकते हैं और होम विजिट रिपोर्ट सबसे महत्‍वपूर्ण बुनियादी दस्तावेज होता है जो अदालत में दिव्यांगजन के अधिकारों को सुनिश्चित करती है। इसलिए स्‍थानीय स्‍तरीय समिति को होम विजिट की रिपोर्ट में छोटे से छोटे डेटा को भी अच्छी तरह से कैप्चर करते हुए शामिल करना चाहिए।
    6. स्‍थानीय स्‍तर की समिति के संयोजक, आवेदक को दो भागों (भाग-ए और भाग-बी – अनुलग्नक 2) वाले फॉर्म देते हैं जिसमें इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से उल्लिखित होता है।
    7. इस फॉर्म के भाग-ए में आवेदन पर कार्रवाई के लिए आवश्यक दस्तावेजों की एक चेकलिस्ट है। आवेदक को पहले से उपलब्ध दस्तावेजों और जमा किए जाने वाले आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियों के बारे में जानकारी दी जाती है।
    8. फॉर्म के भाग-बी में उन चल और अचल संपत्तियों के बारे में विवरण प्रस्तुत करना होता है जिन पर दिव्यांगजन की हिस्सेदारी है। फॉर्म के इस हिस्से पर आवेदक को हस्ताक्षर और ग्राम अधिकारी को प्रमाणित करना होता है, जो बाद में कानूनी संरक्षकता प्रमाणपत्र में संपत्ति विवरण भरने के लिये, यदि आवश्यक हो, रिकॉर्ड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो जाता है।
    9. आवेदक को स्पष्ट रूप से सूचित किया जाता है कि दस्तावेजों के किसी भी प्रकार के सत्यापन की आवश्यकता नहीं है और केवल फोटोस्टेट प्रतियां ही पर्याप्त होंगी। आवेदक को सलाह दी जाती है कि फॉर्म के भाग-ए और भाग-बी की आवश्यकताएं पूरी होते ही स्‍थानीय स्‍तर की समिति के संयोजक को कॉल करें, ताकि फॉर्म और दस्तावेजों को व्यक्तिगत रूप से उनके कार्यालय में जमा करने में आसानी हो सके।
    10. नियुक्त कानूनी संरक्षक के कार्योकी निगरानी के लिये दिव्यांगजनों के आस-पास में एक अस्‍थायी व्यवस्था/सूचना केन्‍द्र बनाना होगा।
    11. माता-पिता और लाभार्थियों को राष्ट्रीय न्‍यास पर प्रथम स्तर की जानकारी प्रसारित करने के लिए पंचायतवार विशेषज्ञ व्यक्ति की पहचान की जाएगी।

     

    स्रोत- दिनांक 4 अप्रैल 2012 को आयोजित बोर्ड की 49वीं बैठक में कोल्लम, केरल के बोर्ड के तत्कालीन ट्रस्टी और स्‍थानीय स्‍तरीय समिति के एनजीओ सदस्य श्री वेणुगोपोलन की व्यावहारिक अंतर्दृष्टि के आधार पर राष्ट्रीय न्‍यास अधिनियम-1999 के तहत संरक्षकों की नियुक्ति में फील्‍ड विजिट के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई थी। बोर्ड ने सभी स्‍थानीय स्‍तरीय समिति से         श्री वेणुगोपाल की प्रक्रिया अपनाने की सिफारिश करने का निर्णय लिया और स्‍थानीय स्‍तरीय समिति के लिए फंडिंग पैटर्न के तहत होम विजिट के खर्चों को शामिल किया।