समर्थ
योजना संबन्धित जानकारी
- समर्थ योजना का उद्देश्य अनाथों अथवा लावारिसों, संकटग्रस्त परिवारों और बीपीएल तथा एलआईजी परिवारों से आनेवाले विकलांगता-युक्त व्यक्तियों को और ऐसे निराश्रितों को राहतकारी देख-भाल उपलब्ध कराना है।
- दिव्यांगजनों के परिवार के सदस्यों के लिए ऐसे अवसर पैदा करना है कि वे अन्य जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए राहतकारी समय पा सकें
- सभी आयु समूहों के लिए ऐसी सामूहिक गृह सेवा प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें देख-भाल की पर्याप्त एवं उत्तम सेवाओं से युक्त स्वीकार्य जीवन-स्तर की सुविधाओं के साथ-साथ प्रोफेशनल डॉक्टर की बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध हो।
- 30 दिव्यांगजनों का एक बैच
- पंजीकृत संस्था को एलआईजी और एलआईजी से ऊपर के दिव्यांगजनों के लिए 1:1 का अनुपात बनाना आवश्यक।
- यह योजना जम्मू कश्मीर के अलावा पूरे देश में उपलब्ध है।
योजना का विवरण
इस योजना का उद्देश्य समर्थ केन्द्रों की स्थापना करना है, ताकि विनिर्दिष्ट श्रेणी के विकलांगता-युक्त व्यक्तियों को राहत और आश्रय के साथ देख-भाल की सुविधा दी जा सके। समर्थ केन्द्र में कम से कम निम्नलिखित सुविधाएं अवश्य होनी चाहिएः
सामूहिक गृह
पंजीकृत संस्था द्वारा सभी आयु समूहों के लिए ऐसी सामूहिक गृह सेवा प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें देख-भाल की पर्याप्त एवं उत्तम सेवाओं से युक्त स्वीकार्य जीवन-स्तर की सुविधाओं के साथ-साथ प्रोफेशनल डॉक्टर की बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध हो। समर्थ केन्द्र की क्षमता 30 की है, जिसमें गैर एलआईजी और गैर बीपीएल भी शामिल हैं।
समर्थ केन्द्र के किसी एक बैच में 30 दिव्यांगजन हो सकते हैं। अधिकतम 30% अतिरिक्त दिव्यांगजनों को रखने की अनुमति है। इस प्रकार समर्थ केन्द्र में बैच का आकार 39 का हो सकता है। 39 दिव्यांगजनोंं की अधिकतम संख्या पर पहुँचने के उपरान्त समर्थ केन्द्र किसी और दिव्यांगजन को केन्द्र में नामांकन की अनुमति नहीं देगा। यदि नए समर्थ केन्द्र के लिए पर्याप्त संख्या में दिव्यांगजन हों तो पंजीकृत संस्थाओं को दुबारा आवेदन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
पंजीकृत संस्था को एलआईजी (बीपीएल सहित) और एलआईजी से ऊपर के दिव्यांगों (जो पंजीकृत संस्था के लिए सशुल्क सीटें होंगी) के लिए 1:1 का अनुपात बनाए रखना चाहिए। एलआईजी से ऊपर की सीटों के लिए पंजीकृत संगठन माता-पिता, अभिभावकों, परिवार के सदस्यों, पंजी.कृत संगठन अथवा अन्य किसी संस्था/व्यक्ति से सीधे भुगतान ले सकते हैं, जिसके निबंधन व शर्तें पंजीकृत संस्था और अन्य संबंधित पक्षकार (माता-पिता, अभिभावक, परिवार के सदस्य, पंजीकृत संस्था अथवा कोई अन्य संस्था/व्यक्ति) के मध्य आपसी सहमति से निर्धारित की जा सकती हैं।
जैसाकि इस प्रलेख में पहले कहा गया है, यह ध्यान देने योग्य है कि पंजीकृत संस्था को और अधिक दिव्यांगजनों को समर्थ केन्द्र में लाना चाहिए जो या तो गैर-एलआईजी हों या उपर्युक्त श्रेणी में शामिल न हों। इससे स्थिरता सुनिश्चित होगी।